रविवार, 24 फ़रवरी 2019

गिरमिटिया

सुनो हीरामन
सच पूछो तो
गिरमिटिया एक विथा कथा है

दी हुई दुनिया
दिया हुआ जीवन
हंसी के पीछे
छुपी व्यथा है

प्रेम-व्रेम का वहम ना पालो
भूख बड़ी है रोटी ढालो
अपनों से दूरी मजबूरी
प्रवासी एक सतत प्रथा है

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

तुम्हारा यूं चले जाना


अच्छा नहीं लगता है
तुम्हारा यूं चले जाना
छुड़ाकर हाथ हाथों से
तुम्हारा यूं चले जाना

कि तुम्हारा साथ जबतक है
गुलशन आबाद रहता है
तितलियां खूब इठलातीं
चमन का नाज रहता है

तुम्हारी एक बिछुड़न
फूलों को नासूर लगती हैं
फिर कोई न देख पाता है
कलियों का खुल के मुस्काना
अच्छा नहीं लगता है
तुम्हारा यूं चले जाना

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

दहक रही ये आग है


दहक रही ये आग है
ये उठ रहा गुबार है
वतन के सीने पर सजी
चिताओं की कतार है
अमर शहीद दहक उठे
दहक उठी हर आंख है
दहकते सीनों से उठी
अंगार सी आवाज़ है
अनाथ मासूमों की चीख
हिंद को झकझोरेगी
बेवा बहनों की दहाड़
बेड़ियां अब तोड़ेगी
जो पूत खो चुकी हैं वो
हिंद की अब मां बनीं
वो आंखें बूढ़े बाप की
वतन की अब जां बनीं
जो लिपट गए तिरंगे में
वो नाज और साज हैं
ताबूत में जो हैं पड़े
वही तो कल और आज हैं
दहक रही ये आग है

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

अंधेरी रात में


याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में
आंख मेरी डूब जाती है तुम्हारी याद में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में

चांद चमके आसमां में वो कभी लगती हो तुम
केश जो लहरा दो तो बादल सी छा जाती हो तुम
फिर कहीं जा छुपती हो तुम तारों की बारात में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में

जब सहर सूरज निकलता, झांकती हो ओट से
तब परिंदे छेड़ते हैं गीत तेरे होंठ से
जब हवा है सनसनाती एक अनूठे राग में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में
आंख मेरी डूब जाती है तुम्हारी याद में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

बेचारी मां


गांव में है घर बड़ा

शहर में फ्लैट पड़ा
चश्मे के मोटे शीशे से निहारे मां

खेती-बाड़ी, बाग-बगीचे, फुलवारी हैं
एक-एक कर सींचे प्यारे से ये क्यारी मां

पोते-पोतियों के संग हंसती जो दिखती है
परेशान घूमती छज्जे और अटारी मां

बेटे चाहते हैं बंटवारा अब घर में
किसकी, कितनी होगी अब हिस्सेदारी मां

छोटा बेटा नौकरी ना कारोबार कर सका
सोच रही कैसी होगी दाल-तरकारी मां

भाई जब भाई से अलग हो जाएगा
राम-लखन किसको पुकारेगी बेचारी मां

राम वनवासी भए, लखन भी तो साथ गए
भाई-भाई ऐसे हों तो प्रेम की पिटारी मां

घर बांटें, खेत बांटें, बांटें मां-बाप को
देख रही अब तो यही दुनियादरी मां

चुप रहे, और रहे अब तो उदास वो
आंखों की ही पुतरी से पा गई कटारी मां

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

तुम भी मेरे जैसी हो


होठों पर जो ये ना-ना तुम लाती हो
आंखों से क्यों हां-हां तुम दोहराती हो
अरे, लगता है तुम भी मेरे जैसी हो-2
कहना जो है वही नहीं कह पाती हो
अरे, होठों पर जो ना-ना तुम लाती हो
आंखों से क्यों हां-हां तुम दोहराती हो

तेरे-मेरे बीच कोई तो रिश्ता है-2
वरना क्यों चेहरे के भाव छुपाती हो
होठों पर जो ना-ना तुम लाती हो
आंखों से क्यों हां-हां तुम दोहराती हो

मेरे कूचे में तेरा यूं आते रहना
आंखों-आंखों से यूं बतियाते रहना
खामोशी के बीच बहुत कुछ कहती हो
होठों पर जो ना-ना तुम लाती हो
आंखों से क्यों हां-हां तुम दोहराती हो

मेरे भीतर ये जो एक बसेरा है
दिल कहता है वो तेरा ही डेरा है
दूर कहीं जो नज़रों से तुम होती हो
क्या पता कितना तुम तड़पाती हो
अरे, होठों पर जो ना-ना तुम लाती हो
आंखों से क्यों हां-हां तुम दोहराती हो

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

इश्क

मुझे टूटे हुए सपनों की सिसकियां सुनाई देतींं हैं
दफ्न पड़े अरमानों की हिचकियां सुनाई देतीं हैं
वो मुझसे पूछ रहे हैं मेरी जागती रातों का सबब
मेरी खामोशी में इश्क की मजबूरियां दिखाई देतीं हैं।

मेघा

पपीहे की प्यास की आस है मेघा
धरा के सूखते कंठ की विश्वास है मेघा
इन्हीं काली घटाओं में कहीं घुल जाता मैं भी
आह, बिछुड़न की सबसे बड़ी संत्रास है मेघा.

तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।