रविवार, 12 अगस्त 2018

कहानी अमर सपूतों की



भारत के वीर सपूतों की...
मैं अमर कहानी कहता हूं...
सन 1947 की...
वो बात पुरानी कहता हूं...
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लाशों पर लाशें पटती थीं...
खून की नदियां बहती थीं...
फिर भी दीवानों की टोली...
वन्दे मातरम कहती थी...
हर मन में बस एक जज्बा था...
सर कट जाए तो कट जाए...
पर भारत माता का अपनी...
सम्मान नहीं जाने पाए...
इस आजादी को लाने में..
इस झण्डे को फहराने में...
कुर्बान जवानी कहता हूं...
भारत के वीर सपूतों की...
मैं अमर कहानी कहता हूं...
सन 1947 की...
वो बात पुरानी कहता हूं...
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न धर्म कोई न जात कोई...
सब एक ही हिन्दुस्तानी थे...
गोरों के खट्टे दांत किए...
ऐसे तेवर तूफानी थे,...
शहर-शहर भारत के पूत
फांसी का फंदा झूल गए...
भारत की माटी चूम-चूम
सौ कष्टों को भूल गए
मैं उनकी वीर शहादत की...
उस वतन परस्त मोहब्बत की...
जाबांज जवानी कहता हूं...
भारत के वीर सपूतों की...
मैं अमर कहानी कहता हूं...
सन 1947 की...
वो बात पुरानी कहता हूं...
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मंदिर मस्जिद में भेद न हो...
गिरजा घर में गुरुद्वारा हो...
भगवान करे इस आंगन का...
अब न फिर  बंटवारा हो...
गीता के छंदों सा निर्मल...
बाइबिल और कुरान पढ़े...
संस्कृति जहां पर करुणा हो...
एक ऐसा हिन्दुस्तान बने...
सबके अपने-अपने मत हैं...
जो नहीं जरुरी सहमत हों...
मैं मन की बात कहता है..
मैं सबकी बात कहता हूं....
भारत के वीर सपूतों की...
मैं अमर कहानी कहता हूं...
सन 1947 की...
वो बात पुरानी कहता हूं...
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अब बहुत उठ चुकीं बंदूकें...
अब वार नहीं करने देंगे...
भाई-भाई के बीच छिपा...
अब प्यार नहीं मरने देंगे...
अब सरहद की सीमाओं पर...
मानवता का पाठ पढ़ाएंगे..
अब खून नहीं हम पानी से...
फूलों का बाग लगाएंगे...
मैं रंग प्रेम का भर दूंगा...
फिर धरती मां का कर दूंगा...
मैं आंचल धानी कहता हूं...
भारत के वीर सपूतों की...
मैं अमर कहानी कहता हूं...
सन 1947 की...
वो बात पुरानी कहता हूं...
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फिर यही तिरंगा विश्व शांति का,...
दूत बना फहराएगा...
जब तक ये धरा सुशोभित है
झण्डा यूं ही लहराएगा...
आजादी के दीवानों की बातें...
जब-जब की जाएंगी
कर याद शहादत वीरों की...
हर आंखें नम हो जाएंगी...
हर बरस लगे उन मेलों की...
तीर-ओ-तलवार के खेलों की...
अंतिम निशानी कहता हूं...
भारत के वीर सपूतों की...
मैं अमर कहानी कहता हूं...
सन 1947 की...
वो बात पुरानी कहता हूं...

तिरंगा पूछ रहा है

कहो महात्मा
लालकिले से लगा पूछने राष्ट्रध्वज यह
कहो महात्मा, भारत वर्ष कैसा लगता है ?
कहो महात्मा, भारत वर्ष कैसा लगता है ?


ग्राम सुराज के सपने अब पूरे हो गए
या किसान अब भी कहीं भूखा मरता है
गली-गली में गीत गा रही सोने की चिड़िया
या कि गरीब अब भी पेट से लड़ता है
कहो महात्मा, अब बुंदेलखंड कैसा लगता है

कहो महात्मा
फूट डालो और राज करो, फिरंगी थे तब
या अब भी वही फिरंगी राज करते हैं
दो सौ वर्षों तक जिनसे लड़ा राष्ट्र ये
क्या अब वो लोग नहीं सत्ता गहते हैं ?

कहो महात्मा
दंगों के खून से रंगी ज़मी कैसी लगती है
कहो महात्मा
घोटालों की लंबी लड़ी कैसी लगती है

आजादी की जंग, यही कहकर तुमने
की थी औरों के समान ही भागीदारी
सत्य-अहिंसा को अपना हथियार बनाया
ये हथियार पड़े थे तब सब पर भारी
क्या सत्य सबल दिखता तुमको अब भारत भर में
या फिर झूठ-फरेब की है अब सरदारी

कहो महात्मा
क्या अहिंसा भारत पहचान बची है
या कि खून से सनी है धरती हमारी
गली-गली में चीख रहीं हैं लुटी बेटियां
चौराहों पर भीख मांग रहीं अब माएं
कहो महात्मा, निर्मल हो गई क्या गंगा अब
या सन 47 से ज्यादा गंदाजल बहता है

कहो महात्मा
सत्य सारथी, और अहिंसा के रक्षक तुम
तुमसे बेहतर कौन जानता मर्म हमारा
राष्ट्रवाद ही राष्ट्र का अगर कलंक बन जाए
तो फिर राषट्रवाद ठुकराना धर्म हमारा
धर्म अगर लोकतंत्र पर हमला कर दे
तो अधर्म पथ ही है धर्म हमारा

कहो महात्मा
लड़ते-लड़ते क्या भारत अब
आजादी का पर्व मना पाएगा यूं ही
अपनों के ही खून सने हाथों से
क्या राष्ट्रध्वज लहरा पाएगा यूं ही

कहो महात्मा
क्या आजादी है सबको भारत भर में
या भीड़तंत्र का राज, तुम्हें कैसा लगता है
कहो महात्मा
लालकिले से लगा पूछने राष्ट्रध्वज यह...
कहो महात्मा..



तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।