बुधवार, 17 अप्रैल 2019

चट्टान पिघलाना है


ओ फूलों पर मंडराने वाले भौंरों
ओ कलियों का रंग चुराने वालों
ओ दीपक पर दहते प्रेम पतिंगों
ओ आंखों से मय छलकाने वालों
ओ बागों के सुख में खोए रसिकों
भ्रमरों का जीवन राग सुनाने वालों
रूपजाल के मोहक वृत में खोकर
ओ तारों के छंद छेड़ने वालों
लैला-मजनूं के किस्सों को दुहराकर
ओ चंदा को रोज़ छलने वालों
ये कोमल सा प्यार तुम्हारे हिस्से
अपने हिस्से तो चट्टानी किस्से
अब मुझको तो प्यार आजमाना है
चट्टान खड़ा है जिसे अब पिघलाना है




सोमवार, 15 अप्रैल 2019

ऐ रूठने वाले


मेरी चाहत, मोहब्बत की हिफाजत करना
ऐ रूठने वाले तू इतनी तो गैरत रखना
जिस तरह मेरी आंखों में तैरतीं यादें
कुछ इस तरह तुम भी तो चाहत रखना

वो कहते हैं हमसे रूठ कर जाने वाले
मेरी आदत में नहीं है मोहब्बत करना
वो जो समझे थे मोहब्बत को खोना-पाना
हम समझते रहे मोहब्बत है इबादत करना
मेरी चाहत, मोहब्बत की हिफाजत करना
ऐ रूठने वाले तू इतनी तो गैरत रखना

तूने पूछा नहीं जागती रातों का सबब
तूने देखा ही नहीं आंखों का समंदर होना
तूने ढूंढा ही नहीं जिगर का बहता झरना
मेरी चाहत, मोहब्बत की हिफाजत करना
ऐ रूठने वाले तू इतनी तो गैरत रखना

है वजूद जब तक मोहब्बत दिलों में जिंदा है
वो देखो जहां नफरत है वो किस तरह शर्मिंदा है
जिस दिन जाऊं मैं छोड़ कर ये तेरी दुनिया
मेरी मय्यत से ना तुम अदावत करना
मेरी चाहत, मोहब्बत की हिफाजत करना
ऐ रूठने वाले तू इतनी तो गैरत रखना ।

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

जहां युद्ध है वहां प्रेम है


तुम दीपशिखा सी शांत भाव में लीन
मैं लपटों पर नाग सा फन लहराता
तुम अधरों पर गंगा जल की धारा
मैं चट्टानों पर ज्वाला धधकाता
तुम विधि से सम्मत एक शालीन सी काया
मैं विधि विरुद्ध हर एक विधि अपनाता
ये विभेद प्रकृति का परम नियम है
जहां दिवस है वहीं खड़ा भी तम है।

तुम उपवन में एक कली मुस्काती
मैं कंटक की राह रोज़ अपनाता
तुम उपवन में उड़ती तितली सी हो
मैं वन-वन घूम धूप-घाम अपनाता
तुम चांद सी शीतलता हो बरसाती
मैं अंगारों पर ही रहा राह बनाता
ये विभेद प्रकृति का परम नियम है
ऊपर से जो कठोर अंदर से वही नरम है।

जो सूरज का ताप नहीं सह पाता
वही चांदनी का सुख नहीं ले पाता
जो दुर्गम पथ से हार मान लेता है
वो फिर हारे को हरिनाम होता है
कठिन राह का पथिक हलाहल पीता
जो लड़ा समर में वही हारा या जीता
अग्नि में जो तपता कनक सदृश है
वही जग के कपाल पर शोभित है
ये विभेद प्रकृति का परम नियम है
जहां अग्नि है वहीं तेज पवन है 

तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।