रविवार, 10 फ़रवरी 2019

अंधेरी रात में


याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में
आंख मेरी डूब जाती है तुम्हारी याद में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में

चांद चमके आसमां में वो कभी लगती हो तुम
केश जो लहरा दो तो बादल सी छा जाती हो तुम
फिर कहीं जा छुपती हो तुम तारों की बारात में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में

जब सहर सूरज निकलता, झांकती हो ओट से
तब परिंदे छेड़ते हैं गीत तेरे होंठ से
जब हवा है सनसनाती एक अनूठे राग में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में
आंख मेरी डूब जाती है तुम्हारी याद में
याद बनके आती हो तुम क्यों अंधेरी रात में

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।