शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

दहक रही ये आग है


दहक रही ये आग है
ये उठ रहा गुबार है
वतन के सीने पर सजी
चिताओं की कतार है
अमर शहीद दहक उठे
दहक उठी हर आंख है
दहकते सीनों से उठी
अंगार सी आवाज़ है
अनाथ मासूमों की चीख
हिंद को झकझोरेगी
बेवा बहनों की दहाड़
बेड़ियां अब तोड़ेगी
जो पूत खो चुकी हैं वो
हिंद की अब मां बनीं
वो आंखें बूढ़े बाप की
वतन की अब जां बनीं
जो लिपट गए तिरंगे में
वो नाज और साज हैं
ताबूत में जो हैं पड़े
वही तो कल और आज हैं
दहक रही ये आग है

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।