गुरुवार, 29 मार्च 2018

चंदा मामा कभी ना आया

चंदा मामा आएगादूध-भात लाएगा
चांदी के चम्मच से तुझको खिलाएगा
माई ने कह दियागुनगुनाते रहे हम
माड़भातनूून खाते रहे हम
माटी के चूल्हे पर तसला चढ़ाती थी
पानी खदकने पर खीर बताती थी
खीर के सपने सजाते रहे हम
माड़भातनून खाते रहे हम
माई ने आंचल को कंबल बताया था
माघ के पाला में उसको ओढ़ाया था
साड़ी को गद्दा समझाते रहे हम
माड़भातनून खाते रहे हम
आंखों के आंसू वो हमसे छुपाती थी
पानी में नून डाल हमको पिलाती थी
शर्बत समझ जीभ चटखाते रहे हम
माड़भातनून खाते रहे हम
माई ने माड़ पियाभात नहीं खाया
माई ने भात खाया नून नहीं मिलाया
माई का स्वाद जान इतराते रहे हम
माड़भातनून खाते रहे हम

बुधवार, 28 मार्च 2018

मिसरा-03


जो आंखों में थे सारे आंसू ही तो थे
जो सूख गए उन्हें दरिया नहीं माना जाता
ग़मों को गीत में बदल गुनगुना लेते हैं
हमसे मुफलिसी का रोना रोया नहीं जाता
वो होंगे और जो रोज़ बदलते हैं चेहरे
हम शायर हैं हमें सियासी नुस्खा नहीं आता

मिसरा-02


यहां तक आते-आते सूख जाती हैं सारी नदियां
और आंखों का पानी भी सूख जाता है
मैं प्यासा खड़ा रहा लहरों की उम्मीदों में
सूखे दरख्तों ने बताया यहां समंदर भी सूख जाता है

मिसरा-01


मोहब्बत करने वालों में किसने नफरत फैलाई है
जली बस्तियां पूछ रहीं हैं किसने आग लगाई है
राख-खाक में जो भी बदला वो भी तेरा हिस्सा था
राम-खुदा तू जो भी है तेरी दुनिया बलवाई है

गुरुवार, 22 मार्च 2018

लोकतंत्र का जमूरा


जमूरा फिर से आएगा
नाग फिर फन लहराएगा 2
वो काली चादर फैलाएगा
वो फिर जुमले दोहराएगा 2
जमूरा फिर से आएगा
नाग फिर फन लहराएगा
चलेगा फिर वो टेढ़ी चाल
छोड़ेगा फिर वो केंचुल-खाल
उसे बस सत्ता की है भूख
खोलगा फिर से वो संदूक
जुबां पर बारूद और बंदूक
हमें वो फिर से डराएगा
जमूरा फिर से आएगा 2
नाग फिर फन लहराएगा
कि जिसकी लाठी उसकी भैंस
दिखाएगा हमको वो तैश
जो बिकेंगे उनके लिए है कैश
जो बचेंगे उनको धर्म की गैस
वो हमें आपस में लड़ाएगा
हमारा घर गिरवाएगा
जमूरा फिर से आएगा
नाग फिर फन लहराएगा
सुनो ऐ देशभक्त लोगों
बनो मत उनके तुम प्यादों
तुम्हारे नेक इरादे हों
सच्चे अपने वादे हों
ये वादा अपनों खातिर हो
देश के सपनों खातिर हो
देश तुम्हारा है प्यारों
बचा लो इसको अब न्यारों
जमूरा तमाशा बना देगा
तुम्हारी हस्ती मिटा देगा
आपस में लड़ना छोड़ो मित्र
गढ़ो एक राष्ट्र का चरित्र
देश फिर मुस्कुराएगा
जमूरा फिर ना आएगा-2



शनिवार, 17 मार्च 2018

देशप्रेम का श्रृंगार


प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
शब्दों में वाण और अंगार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
अधरों पर कृष्ण का अवतार लेकर आया हूं
मेरा प्यार किसी एक के लिए नहीं है
पूरे राष्ट्र के लिए श्रृंगार लेकर आया हूं
शब्दों से राष्ट्र का ऋंगार करता हूं मैं
भावों में तिरंगा का प्यार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
शब्दों में वाण और अंगार लेकर आया हूं

मेरे प्यार में कोई जाति-धर्म भेद नहीं
ना ही कोई मंदिर-मस्जिद का फसाद है
तीन रंग दिल में हों तो राष्ट्र एक होता है
और तिरंगे का कोई धर्म नहीं जात है
गंगा सी लहरें हूं, यमुना की धारा हूं
वेद मंत्र और अजान लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं प्रेम बांटता चला हूं मैं
शब्दों में वाण और अंगार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
अधरों पर कृष्ण का अवतार लेकर आया हूं

मेरे प्यार में कोई चिट्ठी ना मैसेज है
ह्वाट्सऐप का कोई ग्रुप नहीं लाया हूं
सोशल मीडिया पर देशप्रेम का ज्ञान नहीं
गीतों में राष्ट्र का यशगान लेकर आया हूं
और शब्द लहरें ये दूर कहीं अंबर तक
इसीलिए वाणी में अंगार लेकर आया हूं
मेरे प्रेम में मेरा पूरा देश है
और देशप्रेम का मैं ऋंगार लेकर आया हूं।



गुरुवार, 8 मार्च 2018

मुझे इस देश की जनता से शिकायत है

मुझे इस देश की जनता से शिकायत है
मैं देख रहा हूं जनतंत्र में जन के हाथ में डंडा
वो डंडा जो सत्ता के वहशियों ने थमाया है
वहशियों के निक्कर के ठीक सामने से निकलता है ये डंडा
जिसमें लगा होता है उनका झंडा

जनता, जो अब भीड़ बनती जा रही है
जिसने देखी है पड़ोसी के बेटे को बेरोजगारी से तंग होकर फांसी पर लटकते हुए
जिसने भोगी है डॉक्टर बिना अस्पतालों में किसी अपने की मौत की पीड़ा
बर्बाद हो चुके सरकारी स्कूलों के एवज में बेंची है अपनी पुश्तैनी ज़मीन
ताकि पढ़ सकें उसके बच्चे और बन सकें सत्ता के वहशियों का हथियार
वो भोगती रही है सरकारी हाकिमों के जुल्म-ओ-सितम
मैं देख रहा हूं उसके हाथ में डंडा, जिसमें लगा है वहशियों का झंडा

इस जनता को डंडों और झंडों का पाठ पढ़ाया जा चुका है
इस जनता को धर्म-जाति का राग रटाया जा चुका है
ये तैयार है भूखे मरने के लिए
ये तैयार है फंदों से अपने बच्चों के शव उतारने के लिए
ये तैयार है अस्पतालों में बिना इलाज तड़पने के लिए
ये तैयार है निजी स्कूलों की खातिर मां के गहने बेचने के लिए
इसे बताया गया है कि डंडा और झंडा ही जनतंत्र है
इसे बताया गया है कि मंदिर और मस्जिद ही दुखों का अंत हैं
इसे बताया गया है एक कोई नेता ही मोक्ष का द्वार है
इसे बताया गया है कि दूसरों से नफरत ही इनके नेता के लिए प्यार है

वो नेता, जो वहशी दरिंदा है, जिसके लिए जनता लजीज परिंदा है
वो नेता, जो ये जानना तक नहीं चाहता कि प्रजा में क्या समानता है
वो बस ये देखता है कि प्रजा में क्या-क्या विभेद है
वो नेता, जिसे ठीक से आता नहीं अपना पिछवाड़ा धोना
वही जनता को भीड़ बनाता है, हाथ में डंडे थमाता है
और इस तरह वो अपना झंडा लहराता है
मुझे बस जनता से शिकायत है
...असित नाथ तिवारी... kavitapunj.blogspot.in

तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।