गांव में है घर बड़ा
शहर में फ्लैट पड़ा
चश्मे के मोटे शीशे
से निहारे मां
खेती-बाड़ी,
बाग-बगीचे, फुलवारी हैं
एक-एक कर सींचे प्यारे से ये क्यारी मां
पोते-पोतियों के संग
हंसती जो दिखती है
परेशान घूमती छज्जे
और अटारी मां
बेटे चाहते हैं
बंटवारा अब घर में
किसकी, कितनी होगी
अब हिस्सेदारी मां
छोटा बेटा नौकरी ना
कारोबार कर सका
सोच रही कैसी होगी
दाल-तरकारी मां
भाई जब भाई से अलग
हो जाएगा
राम-लखन किसको
पुकारेगी बेचारी मां
राम वनवासी भए, लखन
भी तो साथ गए
भाई-भाई ऐसे हों तो
प्रेम की पिटारी मां
घर बांटें, खेत
बांटें, बांटें मां-बाप को
देख रही अब तो यही
दुनियादरी मां
चुप रहे, और रहे अब
तो उदास वो
आंखों की ही पुतरी
से पा गई कटारी मां
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