शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

बेचारी मां


गांव में है घर बड़ा

शहर में फ्लैट पड़ा
चश्मे के मोटे शीशे से निहारे मां

खेती-बाड़ी, बाग-बगीचे, फुलवारी हैं
एक-एक कर सींचे प्यारे से ये क्यारी मां

पोते-पोतियों के संग हंसती जो दिखती है
परेशान घूमती छज्जे और अटारी मां

बेटे चाहते हैं बंटवारा अब घर में
किसकी, कितनी होगी अब हिस्सेदारी मां

छोटा बेटा नौकरी ना कारोबार कर सका
सोच रही कैसी होगी दाल-तरकारी मां

भाई जब भाई से अलग हो जाएगा
राम-लखन किसको पुकारेगी बेचारी मां

राम वनवासी भए, लखन भी तो साथ गए
भाई-भाई ऐसे हों तो प्रेम की पिटारी मां

घर बांटें, खेत बांटें, बांटें मां-बाप को
देख रही अब तो यही दुनियादरी मां

चुप रहे, और रहे अब तो उदास वो
आंखों की ही पुतरी से पा गई कटारी मां

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।