सुनो हीरामन
सच पूछो तो
गिरमिटिया एक विथा कथा है
दी हुई दुनिया
दिया हुआ जीवन
हंसी के पीछे
छुपी व्यथा है
प्रेम-व्रेम का वहम ना पालो
भूख बड़ी है रोटी ढालो
अपनों से दूरी मजबूरी
प्रवासी एक सतत प्रथा है
झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात वादे भी तो सारे उनके जुमल...
कैसे बया करे अपने ही लब्जो से अपनो के बारे में जिन्होंने इतने ताने मारे रोटी के लिए खुद बेबस होके जाना पड़ा रोटी को कमाने
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