मुझे इस देश की जनता से शिकायत है
मैं देख रहा हूं जनतंत्र में जन के हाथ में डंडा
वो डंडा जो सत्ता के वहशियों ने थमाया है
वहशियों के निक्कर के ठीक सामने से निकलता है ये डंडा
जिसमें लगा होता है उनका झंडा
जिसने देखी है पड़ोसी के बेटे को बेरोजगारी से तंग होकर फांसी पर लटकते हुए
जिसने भोगी है डॉक्टर बिना अस्पतालों में किसी अपने की मौत की पीड़ा
बर्बाद हो चुके सरकारी स्कूलों के एवज में बेंची है अपनी पुश्तैनी ज़मीन
ताकि पढ़ सकें उसके बच्चे और बन सकें सत्ता के वहशियों का हथियार
वो भोगती रही है सरकारी हाकिमों के जुल्म-ओ-सितम
मैं देख रहा हूं उसके हाथ में डंडा, जिसमें लगा है वहशियों का झंडा
इस जनता को धर्म-जाति का राग रटाया जा चुका है
ये तैयार है भूखे मरने के लिए
ये तैयार है फंदों से अपने बच्चों के शव उतारने के लिए
ये तैयार है अस्पतालों में बिना इलाज तड़पने के लिए
ये तैयार है निजी स्कूलों की खातिर मां के गहने बेचने के लिए
इसे बताया गया है कि डंडा और झंडा ही जनतंत्र है
इसे बताया गया है कि मंदिर और मस्जिद ही दुखों का अंत हैं
इसे बताया गया है एक कोई नेता ही मोक्ष का द्वार है
इसे बताया गया है कि दूसरों से नफरत ही इनके नेता के लिए प्यार हैवो नेता, जो ये जानना तक नहीं चाहता कि प्रजा में क्या समानता है
वो बस ये देखता है कि प्रजा में क्या-क्या विभेद है
वो नेता, जिसे ठीक से आता नहीं अपना पिछवाड़ा धोना
वही जनता को भीड़ बनाता है, हाथ में डंडे थमाता है
और इस तरह वो अपना झंडा लहराता है
मुझे बस जनता से शिकायत है
...असित नाथ तिवारी... kavitapunj.blogspot.in
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