जो आंखों में थे
सारे आंसू ही तो थे
जो सूख गए उन्हें
दरिया नहीं माना जाता
ग़मों को गीत में
बदल गुनगुना लेते हैं
हमसे मुफलिसी का
रोना रोया नहीं जाता
वो होंगे और जो रोज़
बदलते हैं चेहरे
हम शायर हैं हमें
सियासी नुस्खा नहीं आता
झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात वादे भी तो सारे उनके जुमल...
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