बुधवार, 28 मार्च 2018

मिसरा-03


जो आंखों में थे सारे आंसू ही तो थे
जो सूख गए उन्हें दरिया नहीं माना जाता
ग़मों को गीत में बदल गुनगुना लेते हैं
हमसे मुफलिसी का रोना रोया नहीं जाता
वो होंगे और जो रोज़ बदलते हैं चेहरे
हम शायर हैं हमें सियासी नुस्खा नहीं आता

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।