शनिवार, 17 मार्च 2018

देशप्रेम का श्रृंगार


प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
शब्दों में वाण और अंगार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
अधरों पर कृष्ण का अवतार लेकर आया हूं
मेरा प्यार किसी एक के लिए नहीं है
पूरे राष्ट्र के लिए श्रृंगार लेकर आया हूं
शब्दों से राष्ट्र का ऋंगार करता हूं मैं
भावों में तिरंगा का प्यार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
शब्दों में वाण और अंगार लेकर आया हूं

मेरे प्यार में कोई जाति-धर्म भेद नहीं
ना ही कोई मंदिर-मस्जिद का फसाद है
तीन रंग दिल में हों तो राष्ट्र एक होता है
और तिरंगे का कोई धर्म नहीं जात है
गंगा सी लहरें हूं, यमुना की धारा हूं
वेद मंत्र और अजान लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं प्रेम बांटता चला हूं मैं
शब्दों में वाण और अंगार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं प्रेम बांटता चला
अधरों पर कृष्ण का अवतार लेकर आया हूं

मेरे प्यार में कोई चिट्ठी ना मैसेज है
ह्वाट्सऐप का कोई ग्रुप नहीं लाया हूं
सोशल मीडिया पर देशप्रेम का ज्ञान नहीं
गीतों में राष्ट्र का यशगान लेकर आया हूं
और शब्द लहरें ये दूर कहीं अंबर तक
इसीलिए वाणी में अंगार लेकर आया हूं
मेरे प्रेम में मेरा पूरा देश है
और देशप्रेम का मैं ऋंगार लेकर आया हूं।



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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।