प्रेम का पथिक हूं मैं
प्रेम बांटता चला
शब्दों में वाण और
अंगार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं
प्रेम बांटता चला
अधरों पर कृष्ण का
अवतार लेकर आया हूं
मेरा प्यार किसी एक
के लिए नहीं है
पूरे राष्ट्र के लिए श्रृंगार लेकर आया हूं
शब्दों से राष्ट्र
का ऋंगार करता हूं मैं
भावों में तिरंगा का
प्यार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं
प्रेम बांटता चला
शब्दों में वाण और
अंगार लेकर आया हूं
मेरे प्यार में कोई
जाति-धर्म भेद नहीं
ना ही कोई
मंदिर-मस्जिद का फसाद है
तीन रंग दिल में हों
तो राष्ट्र एक होता है
और तिरंगे का कोई
धर्म नहीं जात है
गंगा सी लहरें हूं, यमुना
की धारा हूं
वेद मंत्र और अजान
लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं
प्रेम बांटता चला हूं मैं
शब्दों में वाण और
अंगार लेकर आया हूं
प्रेम का पथिक हूं मैं
प्रेम बांटता चला
अधरों पर कृष्ण का
अवतार लेकर आया हूं
मेरे प्यार में कोई
चिट्ठी ना मैसेज है
ह्वाट्सऐप का कोई
ग्रुप नहीं लाया हूं
सोशल मीडिया पर देशप्रेम का ज्ञान नहीं
गीतों में राष्ट्र
का यशगान लेकर आया हूं
और शब्द लहरें ये
दूर कहीं अंबर तक
इसीलिए वाणी में
अंगार लेकर आया हूं
मेरे प्रेम में मेरा
पूरा देश है
और देशप्रेम का मैं
ऋंगार लेकर आया हूं।
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