तेरी आंखों में
चमकूं ऐसे कि माहताब हो जाऊं
हर्फ-हर्फ जुगनू
चमकें, मैं वो किताब हो जाऊं
ऐ चांद, रोज़ उतरा
कर तू यूं ही छत पर
मैं किनारों पर डूब
जाऊं, शब-ए-आफताब हो जाऊं
वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा देखना गौर से वो टूटा होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें