तेरी आंखों में
चमकूं ऐसे कि माहताब हो जाऊं
हर्फ-हर्फ जुगनू
चमकें, मैं वो किताब हो जाऊं
ऐ चांद, रोज़ उतरा
कर तू यूं ही छत पर
मैं किनारों पर डूब
जाऊं, शब-ए-आफताब हो जाऊं
झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात वादे भी तो सारे उनके जुमल...
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