गुरुवार, 13 जून 2019

सपनों के कातिल


एक नन्ही सी चिड़िया वो उड़ना जो चाहे
उसके पर कतरने को सैय्याद खड़ा है
क़दम दर क़दम वो है जाल बिछाता
ले हाथ में खंजर वो जल्लाद खड़ा है

वो नन्ही सी आंखों में उड़ने के सपने
वो नील गगन में सवंरने के सपने
वो सपने जिन्हें सच करने की खातिर
वो चली घोसला छोड़, जहां थे सब अपने

वो दूर गगन में हैं तारे बुलाते
वो दूर चमन में फूल प्यारे बुलाते
वो उड़ना है चाहे गगन में, चमन में
वो उड़ना है चाहे मस्त पवन में

अभी तो बस उड़ना सीखा है उसने
अभी तो बस सपनों को सींचा है उसने
अभी आंधियों से ना लाड़ना है सीखा
अभी कूट जालों से ना बचना है सीखा

उसे क्या पता है सैय्यादों की चालें
उसे क्या पता कैसे बिछती हैं जालें
उसे क्या पता कोई कैसे अड़ा है
उसे क्या पता है सैय्याद खड़ा है

एक नन्ही सी चिड़िया वो उड़ना जो चाहे
उसके पर कतरने को सैय्याद खड़ा है


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।