1.
मुझे अब भी इंतज़ार रहता है
बस कहता नहीं हूं मैं
क़तरा-क़तरा समंदर चाहत का बन गया
पलकों में क़ैद रहता हूं
बस बहता नहीं हूं मैं।
2.
उसका चेहरा सच की किताब लगता है
आसमां के सीने पर सूरज इनकलाब लगता है
ऐ समंदर तेरे सीने में जो हर रात चमकता है
मेरी आंखों में वो माहताब लगता है
मेरे सीने में सुराख जिसने की, वही खंजर
उसके हाथों में जश्न-ए-खिताब लगता है
मुझे अब भी इंतज़ार रहता है
बस कहता नहीं हूं मैं
क़तरा-क़तरा समंदर चाहत का बन गया
पलकों में क़ैद रहता हूं
बस बहता नहीं हूं मैं।
2.
उसका चेहरा सच की किताब लगता है
आसमां के सीने पर सूरज इनकलाब लगता है
ऐ समंदर तेरे सीने में जो हर रात चमकता है
मेरी आंखों में वो माहताब लगता है
मेरे सीने में सुराख जिसने की, वही खंजर
उसके हाथों में जश्न-ए-खिताब लगता है
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