रविवार, 5 मई 2019

कुछ शेर

उसके-मेरे दरमियां ये फासला होना ही था
जो अपना था ही नहीं वो जुदा होना ही था
दिल को संभालो, रोको, काबू में रखो साहब
ऐसी मोहब्बत का यही सिला होना ही था


इस दौर में एहसास की बात मत कीजिए
आपने क्या-क्या किया ये याद मत कीजिए
रोकिए खुद को टूटने से, बिखरने से, मिट जाने से
किसी के लिए भी खुद को बर्बाद मत कीजिए


शाख से टूटने से पहले बेजान होना पड़ता है
हवाएं कांधा देती हैं फिर खाक होना पड़ता है
अब शिकायत उनसे भला करें भी तो क्या करें
कब्र ही तो है दिल भी, जख्मों को दफ्न होना पड़ता है


मेरे टूटने से, बिखरने से, मिट जाने से
चैन तुझे मिलता है तो मिल जाने दे
मेरा वजूद तुझमें मिलकर खत्म होना था
क्या बुरा कि जुदाई की आग में जल जाने दे


उनकी आंखों में अजीब से शोले थे
मैं जल रहा था, मेरे दिल में फफोले थे
उनको जब तक ग़रज थी आंखों में पानी रखा
वो यूं बदल गए, हम कितने भोले थे


इससे पहले कि दिल के हाथों मजबूर हो जाऊं
बेहतर होगा कि मैं तुमसे दूर हो जाऊं
या फिर टूट के बिखर जाऊं शाख से पत्तों की तरह
या फिर टूटे हुए शीशे सा चकनाचूर हो जाऊं
दूर से ही देखा करूं तेरी हर परवाज को मैं
जो ना देख सकूं तो जिंदगी को नामंजूर हो जाऊं


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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।