रविवार, 14 जनवरी 2018

तब बादल बरसे थे

प्रियवर तब बादल बरसे थे
पहले मन में हुमड़ रहे थे
हृदय पटल पर घुमड़ रहे थे
अंखियन सम्मुख अंधेरा था
मीत मिलन को हम तरसे थे
प्रियवर तब बादल बरसे थे
बरसे थे बन करुण वेदना
जागृत करने तरुण चेतना
समृतिवन को सींच-सींच कर
बीते पल की पुनर्याचना
आंखों से झर-झर झरते थे
प्रियवर तब बादल बरसे थे
मह-मह मिट्टी महक रही थी
चह-चह चाहें चहक रही थीं
आहों का अविरल प्रवाह था
साधें सारी धधक रही थीं
पावक में पंछी झुलसे थे
प्रियवर तब बादल बरसे थे

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।