रविवार, 14 जनवरी 2018

सत्ता की भूख

हर सर पे खून का साया है
हर दर पे कातिल बैठा है
उसकी झक सफेद टोपी_दाढी
यह तिलक लगाए बैठा है
दोनों के हाथ में खंजर है
दोनों की जीभ खून से लथपथ
भोगी दोनो हैं राजपथ के
बिछता इनके आगे जनपथ
ये खून कौम का पीते हैं
खाते हैं नरमांस यही
सत्ता के भूखे कुत्ते हैं
करते सारे कुकांड यही

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।