रविवार, 14 जनवरी 2018

प्रेमपथ

जैसे इलाहाबाद में होता है गंगा-यमुना का मिलन
वैसे मिले थे हम और तुुम कर्मयोग के संगम पर
मिले थे पूरे सैलाब के साथ, प्रवाह के साथ
लेकिन शांत थे हम गंगा-यमुना की तरह ही
फिर टकरातीं रहीं हमारी लहरें, मिलती रहीं धाराएं
कर्मपथ पर ही गढ़ लिया हमने एक प्रेमपथ भी
फिर बेहद व्यस्त दिन भी बीतने लगे थे हंसते-खेलते
और उबाऊ उनींदी रातें भी हो गईं थीं बेहतरीन
रास्ते में आते-जाते कभी हुआ ही नहीं धूप का एहसास
और ना ही जनवरी की रातों में कभी महसूस हुई ठिठरन
एक जोड़ी खाली जेब में एक जोड़ी खाली हाथ
और हंसते-बतियाने के लिए तुम्हारा साथ
बीतने लगे थे जीवन के सबसे खूबसूरत पल
और मिले भी तो थे हम यमुना के किनारे वाले शहर में
उस शहर में जहां हर आदमी दौड़ता है, भागता है
खुद से ही थक-हार कर हांफता है
वहीं मिले थे हम गंगा-यमुना की तरह
और फिर वहीं से बह निकले अलग-अलग दिशाओं के लिए
ठीक वैसे ही जैसे इलाहाबाद से अलग हो जातीं हैं गंगा और यमुना
दूर, एक दूसरे से बहुत दूर, समंदर तक अलग-अलग ही
लेकिन फिर मिलतीं हैं, समंदर में, बादलों में और बारिश के साथ नदियों में
शायद वैसे ही मिलना होगा किसी दिन हमारा भी
बादलों के पार, लहरों के पार, या फिर बूंदों के बीच
किसी कर्मपथ पर ही या फिर किसी प्रेमपथ पर ही

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।