रविवार, 14 जनवरी 2018

वज्र जरूरी है

टूट पाएंगे न पत्थर प्यार से मनुहार से

तोड़ दो इनको अब वज्र के प्रहार से

कुरुक्षेत्र के रण में भीष्म प्रतिज्ञा तोड़ दो

सामने जितने शिखण्डी बांहें उनकी मोड़ दो

अब करो इनसे न तुम न्याय की याचना
पालते अपने हृदय में सत्ता की ये कामना
साध्य तेरे क़ैद हैं ऊंची इस दीवार में
ढाह दो इनकी हवेली वज्र के प्रहार से
ये स्वतंत्र चेतना के शत्रु समान है
ये बुलंदीतानाशाही देश का अपमान है
बरस सत्तर बीत गए ऐतबार केइंतजार के
तोड़ दो इनको अब वज्र के प्रहार से

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।