जिस नदिया को पूर्ण सफर कर
सागर तट जाना होता है
लय-छंद की जिस सरिता को
घाटों से टकराना होता है
उसके जीवन की सरिता को
निश्छल ही बहना पड़ता है
और हृदय के महाकाव्य को
आंखों से कहना पड़ता है.
महाकाव्य है वही
रचा जिसे प्रेम के छंदों ने
महाकाव्य है वही
गहा जिसे भावों के मकरंदों ने
और पवित्रता की वेदी पर
जो तप कर तेज निखरता हो
महाकाव्य है वही
जो मनुजता से रोज सवंरता हो.
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