शनिवार, 25 जुलाई 2020

दिल-ए-बीमार

दिल-ए-बीमार कभी दवाख़ानों में नहीं जाते
जख्मी दिल लेके शफाखानों में नहीं जाते
जाने को तो वो हर जगह चले जाएं मगर
मरहम मिल जाए उन ठिकानों पर नहीं जाते

उसने देखा नहीं इश्क में ये मंजर होना
सूनी आंखों में लहू का समंदर होना
मेरी बरबादी का वो जश्न चाहे खूब करें-2
हमें आता है लुट कर भी कलंदर होना

मेरे आंसू मेरी पलकों पे ठहर जाते हैं
हम वो शय हैं जो गिर कर भी संभल जाते हैं
बड़े नादान हैं मेरे ग़म पे मुस्कुराने वाले-2
हम वो शय हैं जो हर दर्द आजमाते हैं

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।