हर बार टूटना, हर
बार बिखरना
फिर लहरों में मिलते
जाना
फिर टकराना, फिर मिट
जाना
तटों का कंठहार हो
तुम
कोई कहानी नहीं जो
खत्म जाओगे
मेरे लिए अंतहीन
इंतजार हो तुम
जैसे देखा है न
पपीहे को
बारिश की पहली बूंद
का इंतजार करते हुए
कांटा-कांटा,
पत्ती-पत्ती कलियों का सफर
फूलों का वही निखार
हो तुम
कोई कहानी नहीं जो
खत्म जाओगे
मेरे लिए अंतहीन
इंतजार हो तुम
जैसे सदियों तक जमा
होता है
पहाड़ के गर्भ में
बारिश का पानी
फिर रिसता है, बहता
है, तोड़ता है, फोड़ता है,
लड़ता है चट्टानों से
बड़ी जंग
फिर फूटती है कहीं
नदी की एक धार
कल-कल उफनाती,
इतराती वही नदी,वही मझधार हो तुम
कोई कहानी नहीं जो
खत्म जाओगे
मेरे लिए अंतहीन
इंतजार हो तुम
देखी है तुमने भी फूटते
कोपलों की मुस्कान
सुना है मैंने भी
चिड़ियों का मधुर तान
शाम को उम्मीदों को
समेटे डूबता है जो सूरज
सबेरे वही सूरज
उम्मीदों को बिखरेता है क्षितिज के पार
डूबना-उगना, क्षितिज
पर उम्मीदों का पसर जाना
उम्मीदों के क्षितिज
का विस्तार हो तुम
कोई कहानी नहीं जो
खत्म जाओगे
मेरे लिए अंतहीन
इंतजार हो तुम
मेरे लिए अंतहीन इंतजार हो तुम
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