बुधवार, 17 अप्रैल 2019

चट्टान पिघलाना है


ओ फूलों पर मंडराने वाले भौंरों
ओ कलियों का रंग चुराने वालों
ओ दीपक पर दहते प्रेम पतिंगों
ओ आंखों से मय छलकाने वालों
ओ बागों के सुख में खोए रसिकों
भ्रमरों का जीवन राग सुनाने वालों
रूपजाल के मोहक वृत में खोकर
ओ तारों के छंद छेड़ने वालों
लैला-मजनूं के किस्सों को दुहराकर
ओ चंदा को रोज़ छलने वालों
ये कोमल सा प्यार तुम्हारे हिस्से
अपने हिस्से तो चट्टानी किस्से
अब मुझको तो प्यार आजमाना है
चट्टान खड़ा है जिसे अब पिघलाना है




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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।