शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

प्रेम अमर है


दो नयन मिले, दो दिल धड़के
दो भौंरों का गुनगुन गान हुआ
जो राधा की भक्ति समझ गया
वो मीरा का विषपान हुआ
संगम की ऐसी धारा का ये
गंगा-जमुना सा पानी है
जब से धरा-गगन हैं ये
तब की ये अमर कहानी है-2

जब फूल खिले उपवन में तो
जब धानी मंजरियां इठलाई थीं
जब प्रेम पद स्पर्श पाकर
हो जीवित अहिल्या इतराई थी
धरती की प्यास बुझाने को
जब से गगन धाम में पानी है
अरे, जब से धरा-गगन हैं ये
तब की ये अमर कहानी है-2

बादल-सागर से शुरू हुई
आदम-हव्वा का रूप लिया
राधा के नयनों से टपकी
जैनब-अबुल ने रोक लिया
खुसरो के सपनों में आई
लैला-मजनू की बलिदानी है
अरे, जब से धरा-गगन हैं ये
तब की ये अमर कहानी है-2

पथिक प्रेम का तुम बनना
संयम की गरिमा साथ रहे
नफरत का सागर सूखेगा
बस हांथों में तेरा हाथ रहे
कलियों पर भौंरों का दीवानापन
जीवन की असल निशानी है
अरे, जब से धरा-गगन हैं ये
तब की ये अमर कहानी है-2

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।