रविवार, 14 जनवरी 2018

एक टीस है

अबकी बिछड़े तो शायद ही मिल पाएंगे
ये जीवन है व्यापार नहीं
इस पार नहीं, उस पार नहीं
जो डूब गया वो डूब गया
फिर धार नहीं, मंझधार नहीं
फिर यादों के कोनों-कोनों में
हम आएंगे और जाएंगे
अबकी बिछड़े तो शायद ही मिल पाएंगे 

जो छोटी-छोटी बातों की गंठरी से गांठ बना बैठे
कुछ निज स्वारथ के चक्कर में फिरते हैं ऐंठे-ऐंठे
कुछ अहंकार का चक्कर है, कुछ मूढ़ मति का दुष्प्रभाव
कुछ खुशफहमी ने मारा तो कुछ समझ फेर का है प्रभाव
यूं तो तिरते-तिरते एक दिन सब रेत फिसल जाएंगे
अबकी बिछड़े तो शायद ही मिल पाएंगे 

अबकी का बिछड़ना अलग राह पर चलना होगा
मंजिलें अलग होंगी, करवां बदलना होगा
फिर न कोई सिरा होगा, न छोर मिलेगा कोई
फिर न कोई ख़बर होगी न ओर मिलेगा कोई
अबकी फासले हमारे इस कदर बढ़ जाएंगे
अबकी बिछड़े तो शायद ही मिल पाएंगे 

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