सोमवार, 15 जनवरी 2018

किस ओर...

इंसान चला, किस ओर चला ?
जग के बंधन को तोड़ चला
सारे संस्कार को छोड़ चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

यूं चला कि जैसे नर पिशाच
कर आदमखोर सा नंगा नाच
सारे जग को यह मोड़ चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

शैतानों से कर कदम-ताल
हैवानों सा होकर बेहाल
इंसानीयत को छोड़ चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

बिन कौड़ी मिलता प्रेम जहां
ममता स्नेह का खेल जहां
उस बस्ती को झकझोर चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

सुख-चैन छोड़ ये नाग रूप
सौंदर्य त्याग, ऐसा कुरूप
ले लाशों का लाख-करोड़ चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

नोचे अपने ही पूतों का
ललकार रहा यमदूतों को
यमराज को पीछे छोड़ चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

ले कंधे पर अपने देवालय
मरघट में जाकर छोड़ चला
इंसान चला, किस ओर चला ?

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।