रविवार, 14 जनवरी 2018

सीधी बात

न मोहब्बत के दिन हैं येन विरहा की रात है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है
ना नसों पर ब्लेड चलती है
ना ही शिकवे-शिकायत है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है

उनींदी रात को जब भी
अकेलेपन ने मुझे घेरा
दिन के उजाले में मतलबी भीड़ का डेरा
चला गया कोई भी नस्तर दिल में चुभाकर
जाना यही हक़ीक़त
नहीं इसमें जज्बात है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है
मुझे याद है वो दिन
जब मिले थे हम और तुम
न सीधा जान पाए थे
न हम पहचान पाए थे
फिर सिलसिला कुछ यूं ही चल पड़ा था शायद
बस इसी तरह वो दिन मुझको याद है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है
तुम्हें भी याद हैं वो दिन
तुम्हें भी मैं याद आता हूं
बस इसी भरोसे को ओढ़ता-बिछाता हूं
यकीं ये भी है मुझको
तुम्हें शिकवा नहीं मुझसे
बस इतनी सी बात है
मैं तुम्हें याद करता हूं
सीधी सी बात है

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।