रविवार, 14 जनवरी 2018

हत्यारे के आंसू

हम जिस समय में जी रहे हैं
उस समय में हत्यारा हत्याओं पर आंसू बहा रहा है
हत्यारों का समूह तालियां पीट रहा है
मुट्ठियां लहरा रहा है, बांहें फड़फड़ा रहा है
हम पर थोप रहा है वो सारे इल्ज़ाम
हमारे बीच के ही किसी शख्स की हत्या करके
वो हमें ही ठहराना चाहता है हत्या का जिम्मेदार
हम खून से लथपथ हैं और वो नारे लगा रहा है
हम डर नहीं रहे हैं तो फिर वो किसी और का कत्ल कर रहा है
ये मरना हमें मंजूर है लेकिन उससे डरना मंजूर नहीं है
डरने और जीने के बीच बिना डरे मौत अच्छी है
दाभोलकर, पनसारे से पहले भगत सिंह, आज़ाद और गांधी
उनसे पहले सुकरात और ईशा मरे, वो भी बिना डरे
तब भी खूब हुईं थीं डराने की कोशिशें
तब भी हत्यारा हत्याओं पर आंसू बहा रहा था
अब भी हत्यारा हत्याओं पर आंसू बहा रहा है
हत्यारों का समूह तलियां बजा रहा है

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