रविवार, 14 जनवरी 2018

सत्ता आग लगाती है

अनुभव की स्याही से वक्त के पन्ने पर
कितना कुछ लिखते हैं हम और आप
हम शब्दों से नाप लेते हैं पेट की गहराई
भावों से माप लेते हैं रोटी का भूगोल
और वो हमें घुमाते रहते हैं गोल-गोल

गोल-गोल घुमाने के लिए भी बनती है रणनीति
जब एेंठती है हमारी अंतड़ी तो सिखाते हैं धर्मनीति
जब फांकाकशी मांगती है विकास का हिसाब
तो वो थमाते हैं हमें राष्ट्रभक्ति की गोटी
उन्हें मालूम है मौत के बाद वाला किस्सा
सबसे ज्यादा मारक यंत्र है, सबसे बड़ा झूठ है
उस लोक के नाम पर इस लोक में सब ठूंठ है
नारों वाला राष्ट्रवाद एक सियासी मवाद है
असली मुद्दों से बचने के लिए ही सारे फसाद हैंं
भूख से मरते बच्चे, जवानों, बूढ़ों, किसानों के क़िस्से मत खोल
राष्ट्रभक्त बनना है तो भारत माता की जय बोल
बोल की भूख का सवाल राष्ट्रद्रोह कहलाता है
बोल कि सरोकार का सवाल सत्ता-समाज को हिलाता है
हिलती सत्ता अच्छी नहीं होती,लिहाजा क़ानून डंडा चलाता है
फौज-तोपों वाली सत्ता नारों से हिल जाती है
फिर वो राष्ट्र का प्रेम भाव तोप में लगाती है
तोप से निकले राष्ट्रवादी गोले दिमाग पर बरसाती है
सत्ता ऐसे ही देश में आग लगाती है। 

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।