झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए
साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए
फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात
वादे भी तो सारे उनके जुमले निकल गए।
असित नाथ तिवारी की कविताएं
झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए
साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए
फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात
वादे भी तो सारे उनके जुमले निकल गए।
कभी राम की आड़ में
कभी पाकिस्तान की आड़ में
वो चुनाव ही लड़ता है
मुसलमान की आड़ में;
कहता था कि दिखाएंगे
लाल आंखें चीन को
अब नैन मटक्का करने लगा
ट्रंप पहलवान की आड़ में।
आप कीजिए धर्म की रक्षा
वो छापेंगे नोट
वो बनेंगे राजा-मंत्री
आप डालिए वोट;
उनका बेटा बैठ हवाई जहाज
पढे़गा जा के लंदन
आपका बेटा बांध मुरेठा
फिरेगा गोपाल ठनठन।
सुना कि अब वो जाग गया है
पर मुंह नहीं है धोया
खुलते ही उसके मुंह से
निकले दुर्गंध का लोया
जगने-जगने की बात करे वो
जो मन में राखे खोट
वो बनेगा राजा-मंत्री
आप डालिए वोट।
चल साधो उस गांव जहां अब भी अंधेरा है
उस आंगन में जिसको अब भी भूख ने घेरा है
सूरज रोज़ निकलता होता रोज उजाला है
लेकिन इस घर का दिन भी होता काला है।
काली अंधियारी छाई है
आंगन का चूल्हा उदास है
पेट धंसा, हड्डी दिखती है
और उदासी का जहां रहता डेरा है
चल साधो उस गांव जहां अब भी अंधेरा है।
चल साधो कि वहां तुम्हें चलना ही होगा
देख सही तो क्या उसने अब तक है भोगा
चल साधो कि खोज छुपा कहां सवेरा है
चल साधो उस गांव जहां अब भी अंधेरा है।
बाभन, बनिया, दलित, मुसलमां
सिख, इसाई, बौद्ध, जैनिया
है कौन यहां काले दुख ने
जिसको न घेरा है
चल साधो उस गांव जहां अब भी अंधेरा है।
कि तुझको चलता देख भरोसा
तुझसे ही सबको है आशा
तेरी आंखों में ही सपनों का बसेरा है
चल साधो उस गांव जहां अब भी अंधेरा है
अब भी अंधेरा है।
वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा
देखना गौर से वो टूटा होगा
बिखर जाने का लिए मलाल वो
भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।
खा के भर पेट लिट्टी-चोखा, चलते गमछा झार के
हम हैं बिहारी भइया हम हैं बिहार के
डूबते सूरज को अर्घ्य हम देते, उगते को परनामी
धरती मइया को अगोरते, भंइसी को दाना-पानी
बंबई, दिल्ली, कलकत्ता में.... हो$$$$$
बंबई, दिल्ली, कलकत्ता में चमकें हम कपार पे
हम हैं बिहारी भइया, हम हैं बिहार के
ठेकुआ, पिड़ुकिया छान के चलते गमछा में सत्तु सानें
मारें रिजल्ट हम आइएएस के, करते हम कप्तानी
आ चना चबाने भरी खूब चबावें हो$$$$$$
चना-चबेना खूब चबावैं करें मेहनत खूब मजूरी
चोरी-ठगी हमको ना आवै, आवै ना जी हुजूरी
हमरे पसीनवा से चमके है देशवा संसार में
हम हैं बिहारी भइया हम हैं बिहार के
बोरा-झोरा ले के निकलते, डिग्री ले के आते
कुदाल फावड़ा टोकरी उठा के संसद हम ही बनाते
चंद्रयान को भी रच देते, पुल-पुलिया भी गढ़ देते
अरे हमरे बदन से टपके पसीनवा ठेठ ईमान के
हम हैं बिहारी भइया हम हैं बिहार के
बाकी दुनिया को तुम केवल बस लड़की ही लगती हो
एक मुझ दीवाने की खातिर इतना क्यों तुम सजती हो
ये नकली श्रृंगार ज़माने को ही अच्छे लगते हैं
मुझको तो तुम रात-अंधेरे चांद सरीखी लगती हो।
ये जो पानी में झिलमिल सा रोज़ ही चांद उतरता है
मेरी आंखों में तुम वो ही चांद सा झिलमिल करती हो
और कल ही रात जो तुमको देखा मद्धम रौशन कमरे में
सुंदरता को कह के आया तुम उसके जैसी लगती हो
चांद भी तुमको देख कर अब जलता होगा मन ही मन
चांद को भी मालूम है ये तुम उससे सुंदर लगती हो।
झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात वादे भी तो सारे उनके जुमल...