मेरी आंखों से कभी
ये जो छलक आते हैं
भरी महफिल में भी ये
तनहा भटक जाते हैं
वो क्या जानें कि कतरा
भर की है क्या क़ीमत
ये वो मोती हैं जो
गिरके बिखर जाते हैं-2
मेरी आंखों से कभी
ये जो छलक आते हैं
उनका दिल भी कभी धड़केगा
मेरी खातिर
उनका दिल भी कभी
धड़केगा मेरी खातिर
वो जो ठुकरा के हमको
रोज़ निखर जाते हैं-2
हम वो पत्थर हैं जो
राहों में पड़े रहते हैं
ठोकरों को सहें और खामोश
अड़े रहते हैं
सिसकियां दिल की जो
सुन ले हम वो पत्थर हैं
राह-ए-मोहब्बत में
हम बस यूं ही खड़े रहते हैं
हमने खाई हैं ठोकरें
ज़माने भर की
घूरती रहतीं हैं
निगाहें भी ज़माने भर की
वो जो बस एक बार बढ़
के हमें थाम लेते
बदल जातीं यूं हीं
राहें ज़माने भर की
उसने चाहा ही नहीं
हालात बदलते कैसे
ये आंसू फिर किसी
दामन में पिघलते कैसे
जिनकी खातिर हम चराग
बने बैठे हैं
रौशनी उनको नामंजूर,
हम जलते कैसे
मेरी आंखों से कभी
ये जो छलक आते हैं
भरी महफिल में भी ये
तनहा भटक जाते हैं
वो क्या जानें कि कतरा
भर की है क्या क़ीमत
ये वो मोती हैं जो
गिरके बिखर जाते हैं-2
मेरी आंखों से कभी
ये जो छलक आते हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें