रविवार, 4 अगस्त 2019

वक्त के हाथ से

वक्त के हाथ से यूं फिसलता रहा
जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती रही
वो जाते रहे सामने से मेरे
सांसें मोहब्बत की मचलती रहीं
वक्त के हाथ से....

अभी हुस्न का उनको गुमान है
अभी रूप के हैं दीवाने कई
अभी तो है भवंरों गुंजन यहां
अभी तो बनेंगे फसाने कई
वक्त के हाथ से यूं फिसलता रहा
जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती रही
वो जाते रहे सामने से मेरे
सांसें मोहब्बत की मचलती रहीं

हम तो रेत की मानिंद बिखर जाएंगे
वो भी मूरत सी कोई निखर जाएगी
बात जब भी मोहब्बत की होगी कहीं
सूरत मेरी नज़र में उतर जाएगी
क्योंकि चाहत कभी भी है मरती नहीं
बन मोहब्बत है सांसों में चलती रही
वक्त के हाथ से यूं फिसलता रहा
जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती रही
वो जाते रहे सामने से मेरे
सांसें मोहब्बत की मचलती रहीं

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