गहरे सन्नाटे चीख रहे हैं
खामोश जबां को खींच रहे हैं
देख के चुप्पी ऐसी अब वो
अपनी आंखें भींच रहे हैं
खामोश जबां को खींच रहे हैं
देख के चुप्पी ऐसी अब वो
अपनी आंखें भींच रहे हैं
दर-दर बलवाई का डेरा
घर-घर दहशत ने है घेरा
आग-आग और राख-राख में
बारुदों को सींच रहे हैं
घर-घर दहशत ने है घेरा
आग-आग और राख-राख में
बारुदों को सींच रहे हैं
ये जो चंद दंगाई हैं
मुट्ठी भर बलवाई हैं
सर कलम हमारा कर देंगे
आह भी हमें न भरने देंगे
मुट्ठी भर बलवाई हैं
सर कलम हमारा कर देंगे
आह भी हमें न भरने देंगे
ये चुप्पी हमारी उनकी हिम्मत
ये चुप्पी हमारी, उनकी दहशत
ये चुप्पी हमारी वहशत-वहशत
ये चुप्पी हमारी शातिर सी है
ये चुप्पी हमारी कातिल सी है
ये चुप्पी हमारी, उनकी दहशत
ये चुप्पी हमारी वहशत-वहशत
ये चुप्पी हमारी शातिर सी है
ये चुप्पी हमारी कातिल सी है
लब खोल कि आज़ादी आए
लब खोल कि खामोशी जाए
लब खोल कि दहशत डर जाए
लब खोल की वहशत मर जाए
लब खोल कि सन्नाटा टूटे
लब खोल कि खामोशी रूठे
लब खोल कि गुंडे डर जाएंगे
ये दहशत-वहशत मर जाएंगे
ये धर्म के ठेकेदार हैं जो
दुबकेंगे अपने घर जाएंगे
लब खोल कि खामोशी जाए
लब खोल कि दहशत डर जाए
लब खोल की वहशत मर जाए
लब खोल कि सन्नाटा टूटे
लब खोल कि खामोशी रूठे
लब खोल कि गुंडे डर जाएंगे
ये दहशत-वहशत मर जाएंगे
ये धर्म के ठेकेदार हैं जो
दुबकेंगे अपने घर जाएंगे
फिर कोई छप्पर ना फूंकी जाएगी
फिर कोई विधवा ना पछताएगी
फिर फूल चमन में आएंगे
हिंदू-मुस्लिम मोद मनाएंगे
बस एक बार तू चीख जरा
दहशतगर्दों को चीर जरा
ये चीख विजय को लाएगी
फिर भारत माता मुस्काएगी
फिर कोई विधवा ना पछताएगी
फिर फूल चमन में आएंगे
हिंदू-मुस्लिम मोद मनाएंगे
बस एक बार तू चीख जरा
दहशतगर्दों को चीर जरा
ये चीख विजय को लाएगी
फिर भारत माता मुस्काएगी
....असित नाथ तिवारी...
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