बुधवार, 5 दिसंबर 2018

लब खोल कि सन्नाटा टूटे

गहरे सन्नाटे चीख रहे हैं
खामोश जबां को खींच रहे हैं
देख के चुप्पी ऐसी अब वो
अपनी आंखें भींच रहे हैं
दर-दर बलवाई का डेरा
घर-घर दहशत ने है घेरा
आग-आग और राख-राख में
बारुदों को सींच रहे हैं
ये जो चंद दंगाई हैं
मुट्ठी भर बलवाई हैं
सर कलम हमारा कर देंगे
आह भी हमें न भरने देंगे
ये चुप्पी हमारी उनकी हिम्मत
ये चुप्पी हमारी, उनकी दहशत
ये चुप्पी हमारी वहशत-वहशत
ये चुप्पी हमारी शातिर सी है
ये चुप्पी हमारी कातिल सी है
लब खोल कि आज़ादी आए
लब खोल कि खामोशी जाए
लब खोल कि दहशत डर जाए
लब खोल की वहशत मर जाए
लब खोल कि सन्नाटा टूटे
लब खोल कि खामोशी रूठे
लब खोल कि गुंडे डर जाएंगे
ये दहशत-वहशत मर जाएंगे
ये धर्म के ठेकेदार हैं जो
दुबकेंगे अपने घर जाएंगे
फिर कोई छप्पर ना फूंकी जाएगी
फिर कोई विधवा ना पछताएगी
फिर फूल चमन में आएंगे
हिंदू-मुस्लिम मोद मनाएंगे
बस एक बार तू चीख जरा
दहशतगर्दों को चीर जरा
ये चीख विजय को लाएगी
फिर भारत माता मुस्काएगी
....असित नाथ तिवारी...

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