इन आंखों में दरिया सा एक ख्वाब उतरा है
फिर इस झील में देखो एक चांद उतरा है
बिछड़े इश्क की इन्हीं नाउम्मीद राहों में
कहीं शीरीं उतरी है कहीं फरहाद उतरा है
झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात वादे भी तो सारे उनके जुमल...
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