सोमवार, 15 जनवरी 2018

वर्षा रानी

हुमड़-घुमड़ अम्बर तन गर्जन छोड़ वर्षा तू आ जा
प्यासा मन, व्याकुल चितवन शीतल तृप्त करा जा

झम-झम, हहर-हहर तू बरसो वर्षा रानी
जीवन के शत शुष्क भाव को कर दो पानी-पानी

रूखे-सूखे काल खंड में हरियाली तू भर दे
तोड़ बांध, सीमाएं, घट-पट चल स्वच्छंद तू कर में

गंगा की लहरें बन जा और यमुना की धारा
जीवन के शत-शत प्रवाह की छू ले घाट किनारा

वेग भला तेरा कौन रोके, किसमें इतना दम है
धरा, गगन, पर्वत के तन सब तेरे ही हमदम हैं

सागर की लहरों में लहरे तेरी विजय पताका
तेरे जैसा दानवीर कौन, कौन है ऐसा दाता

छोड़ गर्जना अब तो तू बस आ ही जा अब आ जा
प्यासा मन, व्याकुल चितवन शीतल तृप्त करा जा

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तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।