बाकी दुनिया को तुम केवल बस लड़की ही लगती हो
एक मुझ दीवाने की खातिर इतना क्यों तुम सजती हो
ये नकली श्रृंगार ज़माने को ही अच्छे लगते हैं
मुझको तो तुम रात-अंधेरे चांद सरीखी लगती हो।
ये जो पानी में झिलमिल सा रोज़ ही चांद उतरता है
मेरी आंखों में तुम वो ही चांद सा झिलमिल करती हो
और कल ही रात जो तुमको देखा मद्धम रौशन कमरे में
सुंदरता को कह के आया तुम उसके जैसी लगती हो
चांद भी तुमको देख कर अब जलता होगा मन ही मन
चांद को भी मालूम है ये तुम उससे सुंदर लगती हो।