बुधवार, 18 दिसंबर 2019

तबीयत हिंदुस्तान की


जिसने दुनिया को बुद्ध दिया
दिया अहिंसा का पैगाम
आज उसी धरती पर देखो
नफरत, हिंसा औ संग्राम
खून सनी मूर्ति खड़ी है
महावीर भगवान की
देखो बापू कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

हाथों में तलवारें लेकर देखो धर्म निकलता है
खूनी मजहब, खूनी पंथ अब रोज ही तांडव करता है
सड़कों पर नारे लगते अब भारत के अपमान की
देखो भगत सिंह कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

गंगा से यमुना को जुदा कर वो नई धार बनाएंगे
और गंगा का घर तोड़ कर वोटबैंक सजाएंगे
सरयू की लहरों पर बहती पीड़ा है अब राम की
देखो आज़ाद कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

बारूदों की फसलें बोतें भारत की पावन भूमि पर
जनता का सिर टांगे घूमें सत्ता की संगीनों पर
मंदिर-मस्जिद के बाहर लटका दें, लाशें ये ईमान की
देखो अशफाक कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

स्कूल-कॉलेजों के छात्रों को आतंकवादी बताते हैं
पढ़े-लिखे लोगों को देखो देशद्रोही कह जाते हैं
रोज़ मजाक बनाते हैं ये खुदीराम के बलिदान की
देखो नेताजी कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

गीता और कुरान के पोथे पग-पग पर ठुकराते हैं
भारत के संविधान को सलीबों पर लटकाते हैं
विवेकानंद के घर को बनाया धरती अब उन्माद की
देखो महात्मा कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

जो अब अमन की बातें करते
उनसे ये चिढ़ जाते हैं
जाति-जाति और धरम-धरम में दुश्मनी खूब बढ़ाते हैं
नफरत के माहौल में गुम हैं ज़रूरतें हिंदुस्तान की
देखो गांधी, कैसे बिगड़ी
तबीयत हिंदुस्तान की

अब न संभले तो फिर सावरकर-जिन्ना उठ आएंगे
एक बार फिर भारत मां का आंचल फाड़ वो जाएंगे
लाज बचानी है अब तो पूर्वजों के बलिदान की
दंगों में ना जलने दें अब
सुंदरता हिंदुस्तान की

आओ बाल,पाल और लाल


चमक उठी सन सत्तावन में
वो तलवार पुरानी थी
अब तो ऐसा लगता है कि
वो लक्ष्मीबाई की नादानी थी।

झांसी का वो किला घिरा था
घर के भेदी की गद्दारी से
और फिरंगी फौज ने घेरा
लक्ष्मीबाई को मक्कारी से।

एक गर्जना और हो उठी
चमक गई तलवार पुरानी
अल्लाह का ले नाम कूद गया
युद्ध में आई नई जवानी,
वो गुलाम गौस था जिसने
झांसी की लाज बचाई थी
भारत मां की खातिर बेटे ने
अपनी जान गंवाई थी।

बोलो झांसी की वीर सपूता
कौन सा मुंह दिखलाओगी ?
अगर सामने गौस आ गए
कैसे आंख मिलाओगी ?

आज तेरी झांसी में ही
निर्लज्ज नारे लहराते हैं
तेरी कुर्बानी के बदले
सब हिंदू राष्ट्र दोहराते हैं
तुमने भी तो कभी नहीं
हिंदू राष्ट्र की बात कही

मंगल पाण्डेय देखो कैसे अब
तेरी कुर्बानी का मोल लगाते हैं
कब्र पे तेरी चढ़-चढ़ वो
उन्मादी नारे दोहराते हैं
आज तेरी दावेदारी करते वो
जो नित दंगे करवाते हैं
अपनी सत्ता की लिप्सा में
वो औरों को मरवाते हैं
तुमने तो कभी नहीं
जाति-धर्म की बात कही।
आज तेरे नाम पर वो 
निर्लज्ज नारे लहराते हैं
तेरी कुर्बानी के बदले
सब हिंदू राष्ट्र दोहराते हैं।

और भगत सिंह, कैसे हो तुम
जाति-धर्म बेकार की बातें
यही तो कहते थे न तुम
धर्म का जहर लाईलाज है
यही तो कहते थे न तुम
तब न समझा, अब ना समझा
ना ही समझने को है तैयार
चूम लिया जो फंदा तुमने
वो लगता इनको बेकार
इनको हिंदू राष्ट्र चाहिए
भाड़ में जाए कुर्बानी
सत्ता भोगी भीड़ आज
करती रहती है मनमानी।

कत्ल हो गए जफर बहादुर
खुदी राम कुर्बान हुए
जुब्बा साहनी की शहादत
और आज़ाद बलिदान हुए
अशफाक को कैसे सब
अपना मुंह दिखलाओगे
सामने गर टीपू मिल गए
कैसे आंख मिलाओगे ?
तुममें से तो किसी ने नहीं
हिंदू राष्ट्र की बात कही।

बोलो भगत सिंह, बोलो लक्ष्मी
बोलो कुअंर सिंह, बोलो हलकारी
बोलो-बोलो जलियांवाला बाग बोलो तुम
अब तो चीखे बल्लभ की सरदारी
इन जहरीले नागों का फन कुचले
कोई ऐसा सुभाष अब आए।
अंग्रेजों की इस पीढ़ी पर
कोई गांधी बन छा जाए।

अनगिन बलिदानों की लाज बचाने को
अब कोई सृजन-किरण छिटकाओ
आओ गोपाल सिंह नेपाली आओ
आओ नागार्जुन, दिनकर आओ
आओ मानवता के रखवालों
आओ भारत के असली लाल
आओ-आओ जयहिंद पुकारो
आओ बाल, पाल और लाल
आओ भारत मां का आंचल
फिर तुम्हें पुकारने आया है
आओ भारत के भाल पर फिर
सांप्रदायिक नाग चढ़ आया है।

तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।