मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

पलकों पर आंसू

दिल-ए-बीमार कभी दवाख़ानों में नहीं जाते
जख्मी दिल लेके शफाखानों में नहीं जाते
जाने को तो वो हर जगह चले जाएं मगर
मरहम मिल जाए उन ठिकानों पर नहीं जाते

उसने देखा नहीं इश्क में ये मंजर होना
सूनी आंखों में लहू का समंदर होना
मेरी बरबादी का वो जश्न चाहे खूब करें-2
हमें आता है लुट कर भी कलंदर होना

मेरे आंसू मेरी पलकों पे ठहर जाते हैं
हम वो शय हैं जो गिर कर भी संभल जाते हैं
बड़े नादान हैं मेरे ग़म पे मुस्कुराने वाले-2
हम वो शय हैं जो हर दर्द आजमाते हैं

बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

पथ के पत्थर


मेरी आंखों से कभी ये जो छलक आते हैं
भरी महफिल में भी ये तनहा भटक जाते हैं
वो क्या जानें कि कतरा भर की है क्या क़ीमत
ये वो मोती हैं जो गिरके बिखर जाते हैं-2
मेरी आंखों से कभी ये जो छलक आते हैं

उनका दिल भी कभी धड़केगा मेरी खातिर
उनका दिल भी कभी धड़केगा मेरी खातिर
वो जो ठुकरा के हमको रोज़ निखर जाते हैं-2

हम वो पत्थर हैं जो राहों में पड़े रहते हैं
ठोकरों को सहें और खामोश अड़े रहते हैं
सिसकियां दिल की जो सुन ले हम वो पत्थर हैं
राह-ए-मोहब्बत में हम बस यूं ही खड़े रहते हैं

हमने खाई हैं ठोकरें ज़माने भर की
घूरती रहतीं हैं निगाहें भी ज़माने भर की
वो जो बस एक बार बढ़ के हमें थाम लेते
बदल जातीं यूं हीं राहें ज़माने भर की

उसने चाहा ही नहीं हालात बदलते कैसे
ये आंसू फिर किसी दामन में पिघलते कैसे
जिनकी खातिर हम चराग बने बैठे हैं
रौशनी उनको नामंजूर, हम जलते कैसे  

मेरी आंखों से कभी ये जो छलक आते हैं
भरी महफिल में भी ये तनहा भटक जाते हैं
वो क्या जानें कि कतरा भर की है क्या क़ीमत
ये वो मोती हैं जो गिरके बिखर जाते हैं-2
मेरी आंखों से कभी ये जो छलक आते हैं

तन्हा

 वो जो किसी दिन तुम्हें चुभा होगा  देखना  गौर से  वो टूटा  होगा बिखर जाने का लिए मलाल वो भरी महफ़िल में भी तन्हा होगा।