अखबारों ने रंग-पोत कर जिसको सुविधाएं बतलाईं
रात-दिन टीवी ने जिसके अच्छे दिन की गाल बजाई
गांव-गांव और शहर-शहर में दहक रही हैं वही चिताएं
नए भारत का यही हाल है, क्या-क्या तुमको और बताएं
माओं की चित्कारों से बहरा हुआ समय अभी है
बूढ़े बापू के कंधे पर बेटों की लाशें औंधी हैं
तर्पण और विसर्जन से अब घाटों का दम घुटता है
घंट इतने भारी हो गए कि पीपल का तन झुकता है
चील और कौए नोच रहे हैं, मानव का ये हाल दिखाएं
नए भारत का यही हाल है, क्या-क्या तुमको और बताएं
सांस नहीं है यहां अभी तो तड़प-तड़प तन मरता है
गंगा की धाराओं पर लावारिस ही बहता है
उठती लहरों पर उतराते, धाराओं में गिरते हैं
कुत्ते और सियार नोचते, गिद्ध अघाए फिरते हैं
गंगा की आंखों से तुमको चलो शवों का हाल दिखाएं
नए भारत का यही हाल है, क्या-क्या तुमको और बताएं
उंखड़ रही हैं सांसें देखो, जड़ समाज मरता जाता
चुप्पी जब घनघोर होती, सिस्टम यूं ही सड़ता जाता
ढोते-ढोते लाशों को अब तो चीखो, हुंकार करो
जो सिस्टम हत्यारा है उस पर अब प्रहार करो
या यूं ही अपने बेटों के शव कांधे पर ढोओगे
या यूं ही बच्चों की लाशों पर घुट-घुट कर रोओगे
या यूं ही माओं की रोज आधी चिता सजाओगे
या यूं ही खुद किसी दिन तड़प-तड़प मर जाओगे
समय परीक्षा ले रहा है आओ अपना फर्ज निभाएं
भारत मारा बिलख रही है आओ उसको चुप कराएं