सोमवार, 26 नवंबर 2018

माहताब

आंख खुली, खिड़की खुली माहताब देख लिया
सुबह-सुबह मैंने अजीम खिताब देख लिया
अब क्या ज़िक्र करूं किसी लैला, किसी शीरी, किसी हीर का मैं
एक भोली सी सूरत में सबका जवाब देख लिया

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

प्रेम और स्वार्थ

आंसुओं से पत्थर नम हुआ नहीं करते
इश्क़ करने वाले कभी बद्दुआ नहीं करते
जहां प्रेम हो वहां गलतफहमियां आ नहीं सकतीं
जहां स्वार्थ हो वहां प्रेम हुआ नहीं करते

बुधवार, 14 नवंबर 2018

मोहब्बत की रवायत


तेरी आंखों में रहना है
तेरे दिल में धड़कना है
अपना पथ खुद ही रचना है
प्रचलित गतियों से बचना है

मोहब्बत की रवायत अब तलक
दुनिया ने मानी है
गर ये आग का दरिया है
तो जलना है, संवरना है


मिसरा

 झूठों के सारे झूठ भी नहले निकल गए साहब हमारे दहलों के दहले निकल गए  फर्जी जो निकली डिग्री तो है शर्म की क्या बात  वादे भी तो सारे उनके जुमल...